परिचय
ई. वी. रामास्वामी नायकर, जिन्हें पेरियार के नाम से अधिक जाना जाता है, 20वीं सदी के महानतम समाज सुधारकों में से एक थे। उनका जन्म 17 सितंबर 1879 को तमिलनाडु के इरोड जिले में हुआ था। पेरियार ने अपना जीवन सामाजिक अन्याय, जातिवाद और धार्मिक अंधविश्वासों के खिलाफ संघर्ष करने के लिए समर्पित किया। वे दक्षिण भारत के उन अग्रणी नेताओं में से थे, जिन्होंने दलितों, महिलाओं और समाज के वंचित वर्गों के अधिकारों की लड़ाई लड़ी।
उनकी विचारधारा का प्रभाव दक्षिण भारतीय राजनीति और समाज पर बहुत गहरा पड़ा। विशेष रूप से तमिलनाडु में द्रविड़ राजनीति का स्वरूप पेरियार की शिक्षाओं और विचारों से बहुत प्रभावित हुआ। पेरियार ने तर्कवाद, नास्तिकता, सामाजिक न्याय, और समानता को अपने आंदोलन का आधार बनाया और धार्मिक पाखंडों और ब्राह्मणवादी विचारधारा का जोरदार विरोध किया।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
ई. वी. रामास्वामी नायकर का जन्म एक धनी वैष्णव व्यापारी परिवार में हुआ था। उनका परिवार धार्मिक और सामाजिक रूप से प्रतिष्ठित था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय विद्यालय में की, लेकिन उन्हें औपचारिक शिक्षा से अधिक रुचि व्यावसायिक गतिविधियों में थी। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण उन्होंने व्यापार में भी कदम रखा, लेकिन सामाजिक असमानता और जातिगत भेदभाव के प्रति उनकी संवेदनशीलता ने उन्हें समाज सुधार की दिशा में बढ़ाया।
पेरियार ने समाज में व्याप्त धार्मिक अंधविश्वासों और जातिगत अन्याय को बचपन से ही देखा था। समाज में दलितों और निम्न जातियों के प्रति होने वाले अत्याचार और भेदभाव ने उन्हें गहरे रूप से प्रभावित किया, और यहीं से उनके अंदर समाज सुधारक बनने की चिंगारी जगी।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और स्वाभिमान आंदोलन
ई. वी. रामास्वामी नायकर ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में की। 1920 के दशक में वे कांग्रेस में शामिल हुए और गांधी जी के असहयोग आंदोलन का समर्थन किया। लेकिन जल्द ही उन्होंने देखा कि कांग्रेस के अंदर ब्राह्मणवादी विचारधारा का गहरा प्रभाव था, और पार्टी में जातिगत भेदभाव बहुत अधिक था। इससे वे निराश हो गए और उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ने का निर्णय लिया।
कांग्रेस छोड़ने के बाद पेरियार ने स्वाभिमान आंदोलन की शुरुआत की। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य समाज में व्याप्त जातिगत असमानता और अस्पृश्यता को समाप्त करना था। उन्होंने निम्न जातियों के लोगों को आत्मसम्मान और स्वाभिमान के साथ जीने के लिए प्रेरित किया। उनका मानना था कि सामाजिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता का कोई महत्व नहीं है।
द्रविड़ कड़गम का गठन और ब्राह्मणवाद का विरोध
1938 में पेरियार ने द्रविड़ कड़गम (द्रविड़ आंदोलन) की स्थापना की। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य दक्षिण भारत में ब्राह्मणवादी व्यवस्था को समाप्त करना और द्रविड़ संस्कृति को पुनर्जीवित करना था। पेरियार ने ब्राह्मणों द्वारा समाज में व्याप्त धार्मिक और सामाजिक वर्चस्व का जोरदार विरोध किया। उनका मानना था कि ब्राह्मणवादी धार्मिक ग्रंथ और परंपराएँ जातिगत असमानता और सामाजिक अन्याय को बढ़ावा देते हैं।
द्रविड़ कड़गम के माध्यम से पेरियार ने जाति व्यवस्था के खिलाफ कई अभियान चलाए। उन्होंने दक्षिण भारत में मंदिर प्रवेश आंदोलन की शुरुआत की, जिसमें दलितों और निम्न जातियों के लोगों को मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष किया गया। इसके अलावा, उन्होंने सार्वजनिक स्थानों पर दलितों के साथ होने वाले भेदभाव का भी विरोध किया।
महिला अधिकारों के प्रति समर्पण
पेरियार न केवल जातिगत असमानता के खिलाफ थे, बल्कि उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए भी महत्वपूर्ण कार्य किया। उन्होंने बाल विवाह, दहेज प्रथा, और महिलाओं की अशिक्षा का विरोध किया। उनका मानना था कि महिलाओं को समाज में समान अधिकार मिलने चाहिए और उन्हें स्वतंत्र और आत्मनिर्भर होना चाहिए।
उन्होंने महिलाओं की शिक्षा का समर्थन किया और उन्हें अपनी मर्जी से जीवन जीने की स्वतंत्रता की वकालत की। पेरियार ने पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता की बात की और कहा कि महिलाओं को हर प्रकार के सामाजिक और आर्थिक निर्णयों में समान अधिकार होना चाहिए।
धार्मिक अंधविश्वासों और नास्तिकता का समर्थन
पेरियार तर्कवाद और नास्तिकता के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने धार्मिक अंधविश्वासों और मूर्तिपूजा की कड़ी आलोचना की। उनका मानना था कि धार्मिक पाखंड और अंधविश्वास समाज में असमानता और शोषण को बढ़ावा देते हैं। उन्होंने धार्मिक शोषण का विरोध किया और कहा कि धर्म का उद्देश्य मनुष्य को बांधना नहीं, बल्कि उसे स्वतंत्रता देना होना चाहिए।
पेरियार ने तर्कवादी विचारधारा को समाज में बढ़ावा दिया और लोगों से आग्रह किया कि वे वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं और अंधविश्वासों से दूर रहें। उन्होंने ब्राह्मणवादी धार्मिक ग्रंथों जैसे मनुस्मृति की कड़ी आलोचना की और उसे जलाने का आह्वान किया।
भाषा और सांस्कृतिक पुनर्जागरण
पेरियार ने तमिल भाषा और द्रविड़ संस्कृति के पुनरुत्थान के लिए भी महत्वपूर्ण कार्य किया। उनका मानना था कि ब्राह्मणवादी संस्कृति ने दक्षिण भारत की स्थानीय भाषाओं और संस्कृतियों को दबाया है। उन्होंने तमिल भाषा को विशेष महत्व दिया और उसे समाज के सभी वर्गों तक पहुँचाने की कोशिश की।
उनका मानना था कि भाषा एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक पहचान है और इसे संरक्षित रखना अत्यंत आवश्यक है। पेरियार ने हिंदी थोपने के विरोध में भी आंदोलन चलाया और दक्षिण भारत में हिंदी के अनिवार्य रूप से थोपने का विरोध किया। उनका मानना था कि हर क्षेत्र की अपनी भाषा और संस्कृति होनी चाहिए और उसे दबाने का कोई अधिकार नहीं है।
पेरियार और द्रविड़ राजनीति
पेरियार की विचारधारा ने दक्षिण भारत, विशेष रूप से तमिलनाडु की राजनीति को गहराई से प्रभावित किया। द्रविड़ कड़गम आंदोलन से निकलकर कई राजनीतिक दल बने, जिनमें सबसे प्रमुख हैं डीएमके (द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) और एआईएडीएमके (अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम)। इन दलों ने पेरियार की नीतियों और विचारधाराओं को अपनाया और तमिलनाडु की राजनीति में एक प्रमुख स्थान बनाया।
द्रविड़ राजनीति का मुख्य उद्देश्य सामाजिक न्याय, जातिगत असमानता का अंत, और ब्राह्मणवादी वर्चस्व का विरोध रहा है। पेरियार की शिक्षाएँ इन दलों की राजनीतिक नीतियों और कार्यक्रमों में प्रमुख रूप से देखने को मिलती हैं। तमिलनाडु में दलितों, महिलाओं और निम्न जातियों के उत्थान में पेरियार की विचारधारा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
आलोचना और विरोध
पेरियार के विचार और आंदोलन हमेशा से विवादों में रहे हैं। उनके द्वारा किए गए धार्मिक और सामाजिक आलोचनाओं ने ब्राह्मणवादी समाज के एक बड़े वर्ग को नाराज किया। उनके आलोचक उन पर धार्मिक भावनाओं को आहत करने और समाज में विभाजन पैदा करने का आरोप लगाते हैं।
इसके अलावा, पेरियार के नास्तिकता के समर्थन और धार्मिक ग्रंथों की आलोचना ने भी उनके खिलाफ कई विरोधियों को खड़ा किया। उनके विचार दक्षिण भारत में तो बहुत लोकप्रिय थे, लेकिन उत्तर भारत में उनकी विचारधारा को उस स्तर का समर्थन नहीं मिला।
विरासत
24 दिसंबर 1973 को पेरियार का निधन हो गया। उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी विचारधारा और आंदोलन जीवित रहे। द्रविड़ राजनीति और तमिलनाडु में सामाजिक सुधारों के क्षेत्र में उनका प्रभाव आज भी गहरा है। पेरियार को तमिलनाडु में एक महान समाज सुधारक और तर्कवादी के रूप में सम्मानित किया जाता है।
उनकी शिक्षाओं ने न केवल दक्षिण भारत, बल्कि पूरे भारत में सामाजिक न्याय और समानता के आंदोलनों को प्रेरित किया। वे जाति, धर्म और लिंग आधारित असमानताओं के खिलाफ लड़ाई में एक प्रतीक बन गए हैं।
पेरियार की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए तमिलनाडु में कई संस्थाएँ और संगठन काम कर रहे हैं। उनके नाम पर विश्वविद्यालय, संगठन, और कई सामाजिक संस्थान स्थापित किए गए हैं। पेरियार की विचारधारा आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है और सामाजिक न्याय के आंदोलन का एक महत्वपूर्ण आधार है।
निष्कर्ष
ई. वी. रामास्वामी नायकर, जिन्हें पेरियार के नाम से जाना जाता है, भारतीय समाज में सामाजिक सुधार, तर्कवाद, और समानता की दिशा में एक अद्वितीय योगदान देने वाले नेता थे। उन्होंने अपने जीवन को समाज के वंचित और दलित वर्गों के उत्थान के लिए समर्पित किया और जातिवाद, धार्मिक अंधविश्वास, और सामाजिक असमानता के खिलाफ संघर्ष किया। उनकी विचारधारा ने तमिलनाडु और दक्षिण भारतीय राजनीति में एक गहरा प्रभाव डाला और उनकी शिक्षाओं ने लाखों लोगों को सामाजिक न्याय और समानता के लिए प्रेरित किया।
ई. वी. रामास्वामी नायकर, जिन्हें पेरियार के नाम से जाना जाता है, के कुछ प्रमुख उद्धरण हिंदी में:
मनुष्य का मूल्य उसके जन्म से नहीं, उसके कर्म से होता है।
- पेरियार ने जाति-व्यवस्था के खिलाफ यह विचार व्यक्त किया, कि व्यक्ति की पहचान उसके कर्मों से होनी चाहिए, न कि उसकी जाति या जन्म से।
महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार मिलना चाहिए।
- उन्होंने महिलाओं के अधिकारों और उनकी स्वतंत्रता का समर्थन किया।
समाज की प्रगति तभी होगी जब पुरुष और महिला समान रूप से शिक्षित होंगे।
- पेरियार ने महिलाओं की शिक्षा और उनके अधिकारों पर जोर दिया।
जो समाज समानता, स्वतंत्रता और भाईचारे पर आधारित नहीं है, वह सभ्य समाज नहीं हो सकता।
- उनके विचार समानता और सामाजिक न्याय पर केंद्रित थे।
पेरियार ने अपने विचारों से दक्षिण भारत में सामाजिक क्रांति को बढ़ावा दिया और सामाजिक असमानताओं के खिलाफ जीवनभर संघर्ष किया।
दक्षिण भारत के ध्रुवपुरुष पेरियार को e-libraryPortal पर पढ़ना सुखद अनुभव रहा।ज्ञानवर्धक अध्ययन सामग्री का अच्छा संकलन है।
धन्यवाद e-libraryportal