दीपावली या दिवाली भारत का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे “रोशनी का पर्व” भी कहा जाता है। यह त्योहार न केवल हिंदू धर्म के लोगों के लिए बल्कि जैन, सिख और बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए भी महत्वपूर्ण है। दीपावली का पर्व अंधकार पर प्रकाश की विजय, अज्ञानता पर ज्ञान की विजय और बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। यह त्योहार पूरे भारत में हर्षोल्लास और उमंग के साथ मनाया जाता है।
दीपावली पांच दिनों का त्योहार होता है, जिसमें प्रत्येक दिन का अपना विशेष महत्व और रीति-रिवाज होते हैं। दीपावली का प्रमुख दिन कार्तिक माह की अमावस्या को आता है, जो अक्टूबर या नवंबर के महीने में पड़ता है।
दीपावली का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व
दीपावली के त्योहार का उल्लेख अनेक पौराणिक कथाओं और ऐतिहासिक घटनाओं में मिलता है। इनमें से कुछ प्रमुख कथाएँ इस प्रकार हैं:
- भगवान राम की अयोध्या वापसी: सबसे प्रचलित कथा रामायण से जुड़ी है। भगवान राम ने जब रावण का वध करके और चौदह वर्षों का वनवास पूरा करके अयोध्या वापसी की थी, तो अयोध्या के निवासियों ने उनके स्वागत के लिए घी के दीयों को जलाकर पूरे नगर को रोशनी से भर दिया था। इसी उपलक्ष्य में दीपावली मनाई जाती है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
- भगवान कृष्ण और नरकासुर वध: एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक दैत्य का वध किया था, जो पृथ्वी के लोगों को आतंकित कर रहा था। नरकासुर के वध के बाद, लोगों ने भगवान कृष्ण की विजय का जश्न मनाने के लिए दीप जलाए और खुशियाँ मनाईं।
- लक्ष्मी माता का प्राकट्य: देवी लक्ष्मी का प्राकट्य समुद्र मंथन के दौरान हुआ था और माना जाता है कि वह कार्तिक माह की अमावस्या को प्रकट हुई थीं। इसीलिए, दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व है, जिसमें लोग धन-धान्य, समृद्धि और सुख-शांति की कामना करते हैं।
- जैन धर्म में महावीर निर्वाण दिवस: जैन धर्म में दीपावली को भगवान महावीर के निर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भगवान महावीर के मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक है, जो उन्होंने कार्तिक माह की अमावस्या को प्राप्त किया था।
- सिख धर्म में बंदी छोड़ दिवस: सिख धर्म के अनुयायी इस दिन को “बंदी छोड़ दिवस” के रूप में मनाते हैं, जब गुरु हरगोबिंद सिंह जी ने मुग़ल सम्राट जहाँगीर की कैद से 52 राजाओं को मुक्त कराया था।
दीपावली के पांच दिनों का महत्व
दीपावली के उत्सव की शुरुआत धनतेरस से होती है और यह भाई दूज पर समाप्त होती है। प्रत्येक दिन का अपना महत्व और विशेषता होती है:
- धनतेरस: दीपावली का पहला दिन धनतेरस कहलाता है। इस दिन धन के देवता भगवान कुबेर और आयुर्वेदाचार्य धन्वंतरि की पूजा की जाती है। लोग इस दिन सोना, चाँदी, बर्तन, और अन्य बहुमूल्य वस्तुएँ खरीदते हैं। इसे धन-संपत्ति में वृद्धि के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
- नरक चतुर्दशी या रूप चौदस: इसे ‘छोटी दिवाली’ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन को भगवान श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर के वध के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस दिन लोग सुबह जल्दी उठकर उबटन लगाते हैं और स्नान करते हैं, जिससे स्वास्थ्य और सुंदरता में वृद्धि होती है। इसे रूप चौदस भी कहा जाता है, जिसका मतलब है रूप का सौंदर्य।
- दीपावली: यह पर्व का मुख्य दिन होता है और लक्ष्मी पूजन के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन लोग घरों में सफाई करते हैं, दीयों से सजाते हैं और माँ लक्ष्मी, भगवान गणेश, और देवी सरस्वती की पूजा करते हैं। रात को लक्ष्मी पूजा के बाद आतिशबाजी की जाती है और लोग एक-दूसरे के साथ मिठाई बाँटते हैं।
- गोवर्धन पूजा या अन्नकूट: इस दिन को ‘गोवर्धन पूजा’ या ‘अन्नकूट’ के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत को उठाकर इंद्र देव के प्रकोप से गाँव वालों की रक्षा करने की घटना से जुड़ा है। इस दिन अन्नकूट का आयोजन होता है, जिसमें 56 या 108 प्रकार के व्यंजन बनाकर भगवान कृष्ण को अर्पित किए जाते हैं।
- भाई दूज: दीपावली के उत्सव का अंतिम दिन भाई दूज होता है, जिसे ‘यम द्वितीया’ भी कहा जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए उनकी पूजा करती हैं। भाई भी अपनी बहनों की सुरक्षा और समृद्धि का वचन देते हैं। इसे भाई-बहन के स्नेह और रिश्ते को मजबूत करने के पर्व के रूप में मनाया जाता है।
दीपावली की तैयारियाँ और उत्सव
दीपावली की तैयारियाँ कई सप्ताह पहले से ही शुरू हो जाती हैं। लोग घरों की साफ-सफाई करते हैं, नई सजावट करते हैं, और बाजारों से नई वस्तुएँ खरीदते हैं। विशेष रूप से घरों को रंगोली, दीयों, और लाइटों से सजाया जाता है। मान्यता है कि माँ लक्ष्मी स्वच्छ और सुंदर घरों में ही वास करती हैं, इसलिए लोग अपने घरों को सजाने और संवारने में कोई कसर नहीं छोड़ते।
- सजावट और दीप जलाना: दीपावली के दिन घरों और मंदिरों को दीयों, मोमबत्तियों, और इलेक्ट्रिक लाइटों से सजाया जाता है। दीयों की रोशनी अंधकार को दूर करने का प्रतीक है और यह भगवान राम की अयोध्या वापसी का स्मरण भी कराता है। रंगोली बनाना भी दीपावली की एक प्रमुख परंपरा है। इसे घर के प्रवेश द्वार पर रंग-बिरंगे रंगों से बनाया जाता है, जो अतिथियों का स्वागत करने के लिए एक शुभ संकेत माना जाता है।
- लक्ष्मी पूजन: दीपावली की शाम को लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व है। लोग अपने घरों में माँ लक्ष्मी, भगवान गणेश और देवी सरस्वती की पूजा करते हैं और उनकी कृपा की कामना करते हैं। पूजा में धूप, दीप, नैवेद्य, मिठाइयाँ, फूल और नए वस्त्रों का उपयोग होता है। मान्यता है कि लक्ष्मी माता की पूजा करने से घर में धन-संपत्ति और समृद्धि का वास होता है।
- मिठाई और पकवान: दीपावली पर तरह-तरह की मिठाइयाँ और पारंपरिक पकवान बनाए जाते हैं। जैसे लड्डू, बर्फी, गुलाब जामुन, गुझिया, काजू कतली आदि। लोग इन मिठाइयों को अपने मित्रों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों के साथ बाँटते हैं और एक-दूसरे को शुभकामनाएँ देते हैं।
- आतिशबाजी: दीपावली की रात को आतिशबाजी का विशेष महत्व है। लोग पटाखे जलाकर अपनी खुशियाँ जाहिर करते हैं। हालांकि, हाल के वर्षों में पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए ‘हरित दिवाली’ मनाने पर जोर दिया जा रहा है, जिसमें कम ध्वनि और कम प्रदूषण वाले पटाखों का उपयोग किया जाता है।
- उपहारों का आदान-प्रदान: दीपावली के अवसर पर उपहारों का आदान-प्रदान भी एक महत्वपूर्ण परंपरा है। लोग अपने प्रियजनों को मिठाइयाँ, ड्राई फ्रूट्स, आभूषण, वस्त्र, और अन्य उपहार देकर अपनी भावनाओं का इज़हार करते हैं। इससे आपसी रिश्ते और मजबूत होते हैं और समाज में एकता और भाईचारे की भावना को बल मिलता है।
दीपावली का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
दीपावली का केवल धार्मिक महत्व ही नहीं है, बल्कि इसका सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू भी बहुत महत्वपूर्ण है। यह त्योहार विभिन्न जातियों, धर्मों, और समुदायों के लोगों को एकजुट करता है और समाज में सद्भाव और एकता का संदेश देता है। दीपावली का उत्सव समाज में सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देता है।
- सामाजिक एकता और भाईचारा: दीपावली पर सभी लोग मिल-जुलकर इस पर्व का आनंद लेते हैं। यह पर्व लोगों को आपसी द्वेष और मतभेद को भुलाकर एक-दूसरे के साथ मिलकर खुशियाँ मनाने का अवसर प्रदान करता है। इस प्रकार, यह त्योहार समाज में एकता, भाईचारा और सहयोग की भावना को प्रबल बनाता है।
- अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: दीपावली का भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी बड़ा प्रभाव पड़ता है। त्योहार के समय खरीदारी की भारी मात्रा के कारण बाजार में व्यवसायिक गतिविधियाँ बढ़ जाती हैं। कपड़े, आभूषण, इलेक्ट्रॉनिक्स, मिठाइयाँ, और सजावटी वस्त्रों की बिक्री में वृद्धि होती है, जिससे व्यापारियों और दुकानदारों को अच्छा लाभ होता है।
- पर्यावरण के प्रति जागरूकता: हाल के वर्षों में दीपावली को पर्यावरण के प्रति जागरूकता का प्रतीक भी माना गया है। प्रदूषण की समस्या को देखते हुए, लोग अब ‘ग्रीन दिवाली’ मनाने पर जोर दे रहे हैं, जिसमें कम धुएँ और कम शोर वाले पटाखों का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, दीयों के स्थान पर मोमबत्तियों और इलेक्ट्रिक लाइटों का उपयोग भी कम किया जा रहा है।
निष्कर्ष
दीपावली केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है। यह न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक दृष्टिकोण से भी विशेष महत्व रखता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि अंधकार चाहे कितना भी घना क्यों न हो, एक छोटा-सा दीपक भी उसे दूर कर सकता है। इसी प्रकार, दीपावली हमें यह प्रेरणा देती है कि जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएँ, हमें सदैव सच्चाई, अच्छाई, और ज्ञान का मार्ग अपनाना चाहिए।
इस प्रकार, दीपावली एक ऐसा पर्व है जो अंधकार को मिटाकर उजाले की ओर ले जाने का प्रतीक है और हमें जीवन में सकारात्मकता, उत्साह, और सामूहिकता की भावना को बनाए रखने के लिए प्रेरित करता है।